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नज़्म
मेरे नज़्ज़ारे में मुज़्मर था मिरा हाल-ए-तबाह
आबला बन कर उभर आती थी मेरी हर निगाह
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मुश्किलें इस तरह हल होती हैं जोश-ए-अज़्म से
बह निकलती हैं चटानें जिस तरह सैलाब में
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
अब मेरी बातों में वो लफ़्ज़-ए-मोहमल की तरह है
वो अपनी यादों में मुझे तफ़्सील से सोच रहा होगा