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नज़्म
मौज-ए-मुज़्तर थी कहीं गहराइयों में मस्त-ए-ख़्वाब
रात के अफ़्सूँ से ताइर आशियानों में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अता ऐसा बयाँ मुझ को हुआ रंगीं-बयानों में
कि बाम-ए-अर्श के ताइर हैं मेरे हम-ज़बानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़ाफ़िले में ग़ैर फ़रियाद-ए-दिरा कुछ भी नहीं
इक मता-ए-दीदा-ए-तर के सिवा कुछ भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ताइर-ए-ज़ेर-ए-दाम के नाले तो सन चुके हो तुम
ये भी सुनो कि नाला-ए-ताइर-ए-बाम और है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेज़-तर होती हुई मंज़िल-ब-मंज़िल दम-ब-दम
रफ़्ता रफ़्ता अपना असली रूप दिखलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ऐ कि तेरा मुर्ग़-ए-जाँ तार-ए-नफ़स में है असीर
ऐ कि तेरी रूह का ताइर क़फ़स में है असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे इंकार को नफ़रत के ख़ंजर गुदगुदाएँगे
मिरे दिल की रगों में ग़म के शोले तैर जाएँगे
अख़्तर शीरानी
नज़्म
हम मोहब्बत के के ख़राबों के मकीं
कुंज-ए-माज़ी में हैं बाराँ-ज़दा ताइर की तरह आसूदा
नून मीम राशिद
नज़्म
साज़-ए-आहंग-ए-जुनूँ तार-ए-रग-ए-जाँ के लिए
बे-ख़ुदी शौक़ की बे-सर-ओ-सामाँ के लिए