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नज़्म
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वही हैं फ़ासले और क़ाफ़िले फिर भी रवाँ हैं
वही हैं सिलसिले और दाएरे भी बे-कराँ हैं
यावर जव्वाद माजिद
नज़्म
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
सियाह रातों के बे अमाँ रास्तों पे छिटके हुए ये चेहरे
कि जैसे पतझड़ में बिखर गए हों