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नज़्म
ख़याली जन्नतें बनती रहीं बज़्म-ए-तसव्वुर में
अमल से जो बने अब ऐसी जन्नत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
क़फ़स का दर बना देते हैं रश्क-ए-बाब-ए-आज़ादी
जो अहल-ए-होश हैं 'तकमील' ज़िंदानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
तेरी कोशिश से बना हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ
रास्ता तू ने दिखाया बन के मीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
ख़याली जन्नतें बनती रहीं बज़्म-ए-तसव्वुर में
अमल से जो बने अब ऐसी जन्नत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
तेरी कोशिश से बना हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ
रास्ता तू ने दिखाया बन के मीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
क़ाफ़िले वालों को मंज़िल का पता मिल जाएगा
जबकि ऐ 'तकमील' नेहरू हैं अमीर-ए-कारवाँ