aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "talvaa"
के ऐसे ख़राबे में सूखी हथेली है इक ऐसा तलवा के जिस को किसी ख़ार की नोक चुभने पे भीकह नहीं सकती मुझ को कोई बूँद अपने लहू की पिला दो मगर मैं खड़ा हूँ यहाँ किस लिए
पर तिरे नाम पे तलवार उठाई किस नेबात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किस ने
गर आज औज पे है ताला-ए-रक़ीब तो क्याये चार दिन की ख़ुदाई तो कोई बात नहीं
''आँख में पड़ गया कुछ'' कह के ये टाला होगाऔर घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह
ये मौज-ए-नफ़स क्या है तलवार हैख़ुदी क्या है तलवार की धार है
निगाह-ए-मुसलमाँ को तलवार कर दे
और आदमी ही ख़ाक से बद-तर है हो गयाकाला भी आदमी है कि उल्टा है जूँ तवा
तलवार का धनी था शुजाअ'त में फ़र्द थापाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था
जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर हैख़ालिक़ की क़ुदरतों का उसी जा ज़ुहूर है
इक लपकता हुआ शो'ला हूँ मैंएक चलती हुई तलवार हूँ मैं
हर एक दुश्मन-ए-जाँ को कहूँ मैं हमदम-ओ-यारजो काटती है सर-ए-हक़ वो चूम लूँ तलवार
कोई नया नॉवेल पढ़ना हो कोई कहानी लिखनी होसब को टालता रहता हूँ
किसी भी रात से तारीक नहीं की जा सकतीकिसी तलवार से काटी नहीं जा सकती
अज़ल की बिगड़ी ख़ाक बनेगीतू जो चाहे वो नहीं टलता
मैं दुनिया से छुट्टी ले लूँअपने कमरे को अंदर से ताला दे कर कुंजी खो कर
तोप तलवार न ये तेग़-ओ-तबर रखती हैबिंत-ए-हव्वा की तरह तीर-ए-नज़र रखती है
मेरी आँखों ने जिसे फूल से नाज़ुक समझाअब वो चलती हुई तलवार बनी बैठी है
रात दिन रक़्स कियानाचते नाचते तलवे मिरे ख़ूँ देने लगे
कोई ताबिंदा किरन यूँ मिरे दिल पर लपकीजैसे सोए हुए मज़लूम पे तलवार उठे
क़त्ल और ख़ूँ की सियासत के तरफ़-दार नहींदाफ़े-ए-जंग फ़क़त फूल हैं तलवार नहीं
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