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नज़्म
ज़िंदगी तेरी है बे-रोज़-ओ-शब-ओ-फ़र्दा-ओ-दोश
ज़िंदगी का राज़ क्या है सल्तनत क्या चीज़ है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जा-ब-जा बोर्ड पे लिक्खा है कि ख़ामोश रहो
''फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करो महव-ए-ग़म-ए-दोश रहो''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
द्वारका-धीश कहीं बन के मुकुट सर पे रखा
काली कमली रही जंगल में सर-ए-दोश कहीं