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नज़्म
लक्ष्मी की मोहब्बत ने दिल मोह लिया इतना
मुँह मोड़ के का'बे से पहुँचे सू-ए-बुत-ख़ाना
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
मैं उस को का'बा-ओ-बुत-ख़ाना में क्यूँ ढूँडने निकलूँ
मिरे टूटे हुए दिल ही के अंदर है क़याम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
उलूम-ए-नौ से रौशन बज़्म है तहज़ीब-ए-हाज़िर की
यद-ए-तज्दीद ने ढाला है दिल-आवेज़ बुत-ख़ाना
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
मैं उस वादी के ज़र्रे ज़र्रे पर सज्दे बिछा दूँगा
जहाँ वो जान-ए-काबा अज़्मत-ए-बुत-ख़ाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तुम यूँही ज़िद में हुए ख़ाक-ए-दर-ए-मय-ख़ाना
मुझ को ये ज़ोम कि मैं ने तुम्हें टोका कब था
शाज़ तमकनत
नज़्म
कभी ऐ 'नूर' बुत-ख़ाने को का'बे में निहाँ देखा
कभी का'बे में पोशीदा नज़र बुत-ख़ाना आता है
नूर लुधियानवी
नज़्म
घर में कुछ भी नहीं तारीक सी ख़ुशबू के सिवा
कुछ चमकता नहीं अब ख़ौफ़ के जुगनू के सिवा
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
शाद है दिल उन का और बेहद तरब-आलूद है
रिंद-ए-बादा-नोश हैं और वा दर-ए-मय-ख़ाना है