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नज़्म
इस इल्हामी शय को इस पाक जज़्बे को पाक रहने दो
और याद रखो तौहीन-ए-मोहब्बत के मुर्तकिब
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
जिस जगह हूरान-ए-जन्नत का किया है तज़्किरा
क्या कहा है और भी कुछ हम ने जुज़ हुस्न ओ हया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इक निगाह-ए-लुत्फ़ से महरूम रक्खा है मुझे
इस से बढ़ कर और तौहीन-ए-वफ़ा मुमकिन नहीं
नबीउल हसन शमीम
नज़्म
चाँदनी रात में बुझता हुआ पलकों का सितार
फ़र्त-ए-जज़्बात से महकी हुई साँसों की क़तार
वसीम बरेलवी
नज़्म
ऐडवान्स में पैसे दे देना तौहीन-ए-रिंदी ओ मस्ती है
बिल भेज के लेना दाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
तेरे बस में थी अगर मशअ'ल-ए-जज़्बात की लौ
तेरे रुख़्सार में गुलज़ार न भड़का होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
ख़ून-ए-जज़बात से शादाब किया बाग़-ए-सुख़न
फ़ितरतन शायर-ए-ख़ुद्दार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'