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नज़्म
हर इक ग़ुंडा उन्हें घर बैठे ग़ुंडा-टेक्स देता था
तिजोरी तोड़ने का फ़न उन्हीं से मैं ने सीखा था
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
दोनों हाथों से कमा कर उज़्र-ए-नादारी करूँ
जब हुकूमत टेक्स माँगे आह और ज़ारी करूँ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मेरे कंधे पर सर रख के सो जाती है
और कभी खिड़की के पट पर माथा टेक के खो जाती है
अम्बरीन सलाहुद्दीन
नज़्म
न इतने टैक्स ही होंगे कि जिन से जान हो दूभर
ख़ुशी से टैक्स सब देंगे बचेगा इस क़द्र खा कर