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नज़्म
तुम कुफ़्र के फ़तवे लाओगे हम हक़ की दलीलें लाएँगे
तुम अपनों को ठुकराओगे हम ग़ैरों को अपनाएँगे
रेहान अल्वी
नज़्म
हाथों में कपकपी है कभी फूलता है दम
बरहम हैं दाँत कहते हैं ठहरेंगे अब न हम