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नज़्म
तीखी नज़रें हों तुर्श अबरू-ए-ख़मदार रहें
बन पड़े जैसे भी दिल सीनों में बेदार रहें
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
अपनी ग़ज़लों में नज़्मों में तीखी तीखी बातें कहते लोगों पर फबती कसते थे
अपने हों या ग़ैर सभी पर
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
बे-वतन कश्तियों के मुहाजिर क़बीलों का माँझी बनूँ
सर्द पर्बत की तीखी हवाओं को सहते मकीनों का सूरज बनूँ
इरफ़ान शहूद
नज़्म
आज हमारी हर बस्ती में अम्न-ओ-सुकूँ की धूम मची है
कितनी नंगी तीखी चटानें रस्ते रोक रही हैं