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नज़्म
हर एक चेहरा ख़ुद अपनी आँखों में आईना हो गया हो जैसे
तिलिस्म-ए-सिम-सिम से जिस ख़ज़ाने का दर खुला था
हिमायत अली शाएर
नज़्म
अब जो उठा है तो बढ़ता ही चला जाएगा
ये ज़र-ओ-सीम के तूदों से नहीं रुक सकता