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नज़्म
दूर मा'बद से बहुत दूर चमकते हुए अनवार की तमसील बने
आने वाली सहर-ए-नौ यही क़िंदील बने
नून मीम राशिद
नज़्म
कामनी ख़्वाब की लौ में हँसती हुई कामनी
सोला बरस की तक़्वीम में फ़स्ल-ए-गुल का कोई तज़्किरा
अख़्तर उस्मान
नज़्म
अन-गिनत कहकशाओं के झुरमुट ने बे-इंतिहा दाएरे बुन दिए
और पाताल में जज़्ब रंगों ने उगले कई हलहले
इरफ़ान शहूद
नज़्म
गोया तमसील का इक जहाँ पेच-दर-पेच खुलता गया
मेरी बे-लज़्ज़ती कसमसाती हुई ख़ाक होने लगी
इरफ़ान शहूद
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
मिरी दोनों आँखें जो बे-दारी-ए-शब की शाहिद रहीं हैं
मिरी दोनों आँखें जो सोने के नाटक से उक्ता चुकी हैं