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नज़्म
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं
तक़दीर के लब को जुम्बिश है दम तोड़ रही हैं तदबीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आज से मैं अपने गीतों में आतिश-पारे भर दूँगा
मद्धम लचकीली तानों में जीवट धारे भर दूँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी तानों में है ज़ालिम किस क़यामत का असर
बिजलियाँ सी गिर रही हैं ख़िर्मन-ए-इदराक पर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कोयल की सुरीली तानों पर थम थम के पपीहा गाता है
हल हो के हवा की लहरों में सावन का महीना आता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
राज-महल के दरबानों से ये सरकश तूफ़ाँ न रुकेगा
चंद किराए के तिनकों से सैल-ए-बे-पायाँ न रुकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये तरह्हुम से न देखेंगे किसी की जानिब
इन की तोपों के दहन कर दो उन्ही की जानिब