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नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये निस्बत के बहुत से क़ाफ़िए हैं है गिला इस का
मगर तुझ को तो यारा! क़ाफ़ियों की बे-तरह लत है
जौन एलिया
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सबक़ फिर पढ़ सदाक़त का अदालत का शुजाअ'त का
लिया जाएगा तुझ से काम दुनिया की इमामत का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
प्यार पर बस तो नहीं है मिरा लेकिन फिर भी
तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ऐ ग़ाफ़िल तुझ से भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिस्री क़ंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है