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नज़्म
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उठाए कुछ वरक़ लाले ने कुछ नर्गिस ने कुछ गुल ने
चमन में हर तरफ़ बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इन्हीं फ़ज़ाओं में बचपन पला था 'ख़ुसरव' का
इसी ज़मीं से उठे 'तानसेन' और 'अकबर'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
दिलों में दुख आँखों में शबनम हाथों में फूल उठाए
इस नामों के क़ब्रिस्तान का भेद कोई क्या पाए