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नज़्म
ये जी चाहता है कि हम भी यूँही चीख़ें चिल्लाऐं हँस दें यूँही हाथ उठाएँ
हवा में हिलाएँ हिला कर गिरा दें
मीराजी
नज़्म
इतनी सी उम्र में भी फ़ित्ने उठाएँ क्या क्या
पिंकी के गाल नोचे बब्लू को जा खसोटा
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़्म
किसी की तुर्बत पे फ़ातिहा के लिए न ये अपने हाथ उठाएँ
दिनों को यूँही फ़सुर्दा राहों की ख़ाक उड़ाईं
मुख़्तार सिद्दीक़ी
नज़्म
कि सब मिल के मरहूम के हक़ में दस्त-ए-दुआ को उठाएँ
ज़बाँ से कहें अपनी ''मरहूम की मग़फ़िरत हो''
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
पहले सीधा हाथ उठाएँ उल्टा हाथ गिराएँ
उल्टा हाथ उठे फिर ऊपर सीधा हाथ गिराएँ