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नज़्म
क्यों न फिर जी जान से उस ज़ात की ख़िदमत करूँ
मेरी पैदाइश पे तकलीफ़ें उठाईं बे-शुमार
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
कि नफ़्इ-ए-ऐन-ए-ऐन ओ सर-ब-सर ज़िद्दीन हैं दोनों
Luis-Urbina ने मेरी अजब कुछ ग़म-गुसारी की