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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सौ हाथ उठेंगे जब मिल कर दुनिया का गरेबाँ पकड़ेंगे
इंसान वही है ताबिंदा उस राज़ से जिस का सीना है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मिरी दुनिया में कुछ वक़अत नहीं है रक़्स ओ नग़्मा की
मिरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
न नाक़ूस-ए-बरहमन है न आहंग-ए-हुदा-ख़्वानी
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
और फिर गुलशन-ओ-सहरा के बीचों-बीच दिल की सल्तनत में ख़ाक उड़ाएँगे
बहुत मुमकिन है वो उजलत में आए
सलीम कौसर
नज़्म
वो ख़ुद से तो न उट्ठेंगे उन्हें तुम ही उठा देना
घटाई है जिन्हों ने इतनी क़ीमत अपने सिक्के की
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
मज़मूँ फ़िराक़ का हूँ सुरय्या निशाँ हूँ मैं
आहंग-ए-तबा नाज़िम-ए-कौन-ओ-मकां हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साज़-ए-आहंग-ए-जुनूँ तार-ए-रग-ए-जाँ के लिए
बे-ख़ुदी शौक़ की बे-सर-ओ-सामाँ के लिए