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नज़्म
थर-थर का ज़ोर उखाड़ा हो बजती हो सब की बत्तीसी
हो शोर फफू हू-हू का और धूम हो सी-सी सी-सी की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये इल्म-ओ-फ़न का गहवारा है तहज़ीबी इदारा है
नज़र में ये हमारी तो सियासत का अखाड़ा है
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
जिस के बाज़ू की सलाबत पर नज़ाकत का मदार
जिस के कस-बल पर अकड़ता है ग़ुरूर-ए-शहरयार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तो इश्तिराकियत के झंडे गड़ने वाले हैं
अभी तो जड़ से किश्त-ओ-ख़ूँ के नज़्म उखड़ने वाले हैं