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नज़्म
फिर लहू बहने लगा आँखों से क्या फिर छिड़ गया
हल्क़ा-ए-अहबाब में ज़िक्र-ए-विसाल-ए-'आरज़ू'
मासूम शर्क़ी
नज़्म
आतिश-ए-सोज़ाँ में भी वो आह शौहर का ख़याल
और वो दिल में गर्मी-ए-हंगामा-ए-शौक़-ए-विसाल
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
सुन ऐ फ़रेफ़्ता-ए-क़िस्सा-हा-ए-हिज्र-ओ-विसाल
अमीक़-तर हैं समुंदर से ज़िंदगी के निकात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
हिमायत अली शाएर
नज़्म
सुना है हो भी चुका है फ़िराक़-ए-ज़ुल्मत-ओ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ुद अपने दिल का ख़ून फ़ज़ा में उछाल के
मज़मूँ लिखे हैं हम ने फ़िराक़ ओ विसाल के