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नज़्म
दीद ही दीद है ऐ उम्र-ए-रवाँ कुछ भी नहीं
ये जहाँ कितना हसीं है ये जहाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
दीद ही दीद है ऐ उम्र-ए-रवाँ कुछ भी नहीं
ये जहाँ कितना हसीं है ये जहाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
झुलसते दिन की ख़ीरा-कुन फ़ज़ा में
एक उम्र-ए-राएगाँ के आइने में महव हो कर कब नहीं देखा
जमीलुर्रहमान
नज़्म
मिरे सीने को अपनी जगमगाती उँगलियों से चीरने वाले
तू मुझ पर मेरे आने वाले दिन को बे-जिहत कर दे
निसार नासिक
नज़्म
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता तू ने की मुझ से बे-वफाई
आ जा पलट के दम भर मैं हूँ तिरा फ़िदाई