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नज़्म
तहमतन यानी 'रुस्तम' था गिरामी 'साम' का वारिस
गिरामी 'साम' था सुल्ब-ए-नर-ए-'मानी' का ख़ुश-ज़ादा
जौन एलिया
नज़्म
इतने सारे सार्त्रों से मिल कर तुम्हें क्या करना है
अगर ज़ियादा ज़िद करती हो तो अपने वारिस 'शाह'
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली
'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
रईस अमरोहवी
नज़्म
वारिस-ए-असरार-ए-फ़ितरत फ़ातेह-ए-उम्मीद-ओ-बीम
महरम-ए-आसार-ए-बाराँ वाक़िफ़-ए-तब्अ-ए-नसीम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
'वारिस-शाह' और 'बुलहे-शाह' और 'बाबा-फ़रीद'?
चलिए जाने दीजे इन बातों में क्या रक्खा है
सलीम अहमद
नज़्म
याँ तक तो उन पे लाती है नाचारी शब-बरात
वारिस हैं जिन के जीते वो मुर्दे भी आन कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये दर्द-ए-ज़िंदगी किस की अमानत है किसे दे दूँ
कोई वारिस नहीं इस का मताअ-ए-राएगाँ है ये
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कि मैं हूँ वारिस-ए-तारीख़-ए-अस्र-ए-इंसानी
क़दम क़दम पे जहन्नम क़दम क़दम पे बहिश्त