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नज़्म
पिंदार-ए-ख़ुदी है अज़ीज़ उन को तो हमें किया
हम इश्क़ के बंदे हैं वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह