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नज़्म
गुल पशेमाँ क़ल्ब-ए-बुलबुल रश्क से दो-नीम है
तेरी बातों में ख़ुमार-ए-कौसर-ओ-तसनीम हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
छिड़कता है मय-ए-तसनीम-ओ-कौसर आसमाँ जिन पर
लुटाती है सहाब-ए-हुस्न-ओ-तलअत कहकशाँ जिन पर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ