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नज़्म
थे वो फ़ख़्र-ए-आदमियत इफ़्तिख़ार-ए-ज़िंदगी
थे वो इंसाँ तुर्रा-ए-ताज-ए-वक़ार-ए-ज़िंदगी
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
खो दिया है आज के इंसान ने अपना वक़ार
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
वक़ार-ए-आदमियत से ख़िरद को आश्ना कर दूँ
गुज़ार-ए-इश्क़ से आईना-ए-दिल की जिला कर दूँ