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नज़्म
हर-सू मह-वश सादा क़ातिल लुत्फ़-ओ-इनायत की सौग़ात
शबनम ऐसी ठंडी निगाहें फूलों की महकार सी बात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
हर आन दिलों विच याँ अपने जो ध्यान गुरु का धरते हैं
और सेवक हो कर उन के ही हर सूरत बीच कहाते हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरे पहलू में है ये किस हूर-वश की यादगार
जिस से रातों को उठा करते हैं आहों के शरार