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नज़्म
ये बात अक़्ल में भी समाती नहीं है कुछ
शोहरत तो मुफ़्त वोट दिलाती नहीं है कुछ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
कब ग़ुर्बत की मारी जनता वोट की क़ीमत समझेगी
कब तक काले धन से यारो वोट ख़रीदे जाएँगे