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नज़्म
उस दिल की वुसअ'तों में कहीं खो गया हूँ मैं
यूँ है कि इस ज़मीं से बड़ा हो गया हूँ मैं
अशफ़ाक़ हुसैन
नज़्म
कभी रिफ़अ'तों पे लपकीं कभी वुसअ'तों से उलझीं
कभी सोगवार सोएँ कभी नग़्मा-बार जागीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
बिछी हुई है बिसात जिस की न इब्तिदा है न इंतिहा है
बिसात ऐसा ख़ला है जो वुसअत-ए-तसव्वुर से मावरा है
ज़िया जालंधरी
नज़्म
निकल कर जू-ए-नग़्मा ख़ुल्द-ज़ार-ए-माह-ओ-अंजुम से
फ़ज़ा की वुसअतों में है रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
नून मीम राशिद
नज़्म
रिवाज इस का जहाँ की वुसअतों में बे-तकल्लुफ़ है
ये पाकीज़ा ज़बाँ है और लतीफ़ इस का तसर्रुफ़ है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
उफ़ुक़ से शाख़-ए-गुल तलक अलामत-ए-विसाल की लकीरें खींच दें
लहू की वुसअतों का इंकिशाफ़ हो