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नज़्म
ये हर मुमकिन बहार-ए-बज़्म-ए-इम्काँ जिस के दम से है
लब-ए-एजाज़ से हस्ती ग़ज़ल-ख़्वाँ जिस के दम से है
कमाल हैदराबादी
नज़्म
बहार फिरती है आँखों में बज़्म-ए-साक़ी की
सुरूर-ए-रफ़्ता का अब तक ख़ुमार बाक़ी है
मेहदी मछली शहरी
नज़्म
कि ज़र्रा-ज़र्रा है बज़्म-ए-जहाँ का महरम-ए-कैफ़
बहार बन के चली आ कि जा रही है बहार
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
जो शम्अ-ए-इल्म-ए-मग़रिब सय्यद ने की थी रौशन
बिखरी हुई हैं जिस की किरनें हर अंजुमन में
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
ओ चमन की अजनबी चिड़िया! कहाँ थी आह! तू
क्या किसी सहरा के दामन में निहाँ थी आह! तू
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
न जाने मेरे दिल की ख़ुद-फ़रेबी क्यों नहीं जाती
तख़य्युल से हसीं ख़्वाबों के मंज़र गुम नहीं होते
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
मेरे वीराने में पैदा हैं कुछ आसार-ए-बहार
क़िस्सा-ए-दौर-ए-जुनूँ कोई सुनाए न मुझे
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
है दसहरा यादगार-ए۔अज़्मत۔ए۔हिन्दोस्ताँ
हिंदुओं की इक क़दीमी फ़त्ह-ओ-नुसरत का निशाँ