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नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
ज़ुल्म है जौर-ओ-जफ़ा है हर तरफ़ बेदाद है
गर्दिश-ए-दस्त-ए-सितमगर से जहाँ बर्बाद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
गिराईं इस पे लाखों बिजलियाँ चर्ख़-ए-सितमगर ने
मगर अब भी तजल्ली-रेज़ है जन्नत-निशाँ अपना
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
कहाँ तक ऐ सितमगर चर्ख़ तदबीरें ग़ुलामी की
कि अब बार-ए-गराँ है दिल को ज़ंजीरें ग़ुलामी की