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नज़्म
और आख़िर बोद जिस्मों में सर-ए-मू भी न था
जब दिलों के दरमियाँ हाइल थे संगीं फ़ासले
नून मीम राशिद
नज़्म
नेक ओ बद जितने हैं यक-सर की ख़ुशामद कीजे
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कामरानी है पर-अफ़्शाँ मिरे रूमानों में
यास की सइ-ए-जुनूँ-ख़ेज़ पे ख़ंदाँ हूँ मैं