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नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
आज का ख़ून है रंग-ए-गुल-ए-फ़र्दा के लिए
दर्द-ए-ज़ख़्म-ए-दिल-ए-मजरूह की शिद्दत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
अपनी क़िस्मत में लिखे हैं जो विरासत की तरह
आओ इक बार वो ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जाँ देख आएँ