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नज़्म
हो दु'आ मक़्बूल 'साबित' की ब-‘उन्वान-ए-वतन
ता-अबद फूले-फले या-रब गुलिस्तान-ए-वतन
साबित ख़ैराबादी
नज़्म
चराग़-ए-इल्म रौशन है हक़ीक़त की हवाओं पर
हुकूमत कर रहा है एक गोशे से फ़ज़ाओं पर
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ये मक़्नातीस की दावत थी आहन कैसे रद करता
मैं कलकत्ता से रुख़्सत हो के सीधा कानपूर आया