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नज़्म
हाँ सँभल जा अब कि ज़हर-ए-अहल-ए-दिल के आब हैं
कितने तूफ़ान तेरी कश्ती के लिए बे-ताब हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुम्हारे होंटों पे ज़हर-ए-बे-रंग की तहें किस लिए जमी हैं
तुम्हारे चेहरों का ख़ाक सा रंग
फ़य्याज़ तहसीन
नज़्म
मैं ख़ौफ़-ए-हब्स से यक-लख़्त जाग उठता हूँ
ये सोचता हूँ कि बेदारियों में आलम-ए-ख़्वाब