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नज़्म
चाहता हूँ यूँ हो रंगीं पैरहन और सारियाँ
शुस्त-ओ-शू से भी न ज़ाइल हो सकें गुल-कारियाँ
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
इज़हार अपने आप में ज़ाइल हुए तमाम
सिर्फ़ आँख है कि देखती है चाँद निस्फ़ गोल
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
लिक्खूँगी किसी दिन सुनहरे वरक़ पे वो इक अहमरीं नाम
जिस की चमक मेरे सारे अँधेरों को ज़ाइल करेगी
शहनाज़ नबी
नज़्म
ऐ ब-यक शो'बदा ज़ाइल-कुन-ए-ख़श्म-ए-आशिक़
ऐ ब-ज़ाहिर तू बहुत दूर मगर दिल से क़रीब