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नज़्म
मिसाल-ए-चादर-ए-ज़ैनब बढ़ाऊँ मान ज़हरा का
मिरे अज़्म-ए-सफ़र में आज तक लग़्ज़िश नहीं आई
सफ़ीया चौधरी
नज़्म
ज़ैनब भी राहुल के हाथ में बाँध के बोली राखी
दुख-संकट के सागर की नय्या का तू है माझी
मोहम्मद हाज़िम हस्सान
नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
वो चश्म-ए-पाक हैं क्यूँ ज़ीनत-ए-बर-गुस्तवाँ देखे
नज़र आती है जिस को मर्द-ए-ग़ाज़ी की जिगर-ताबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाथ लगा कर देखा तो तन्नूर अभी तक बुझा नहीं था
और होंटों पर मीठे गुड़ का ज़ाइक़ा अब तक चिपक रहा था
गुलज़ार
नज़्म
परवीन शाकिर
नज़्म
नए उनवान से ज़ीनत दिखाएँगे हसीं अपनी
न ऐसा पेच ज़ुल्फ़ों में न गेसू में ये ख़म होंगे