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नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
आज का ख़ून है रंग-ए-गुल-ए-फ़र्दा के लिए
दर्द-ए-ज़ख़्म-ए-दिल-ए-मजरूह की शिद्दत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
अपनी क़िस्मत में लिखे हैं जो विरासत की तरह
आओ इक बार वो ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जाँ देख आएँ
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
बरहना तेग़ों ने सारे मंज़र बदल दिए हैं
फ़सील-ए-क़स्र-ए-अना के नीचे वफ़ा की लाशें पड़ी हुई हैं
तारिक़ क़मर
नज़्म
फिर इत्तिसाल-ए-गर्दन-ओ-ख़ंजर है क्या कहूँ
फिर इख़्तिलात-ए-ज़ख़्म-ओ-नमक-दाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार
तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अगर है चूकना मंज़ूर क़ुराँ की तिलावत से
बरा-ए-ज़ख़्म-ए-ग़फ़लत मरहम-ए-ज़ंगार पैदा कर