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नज़्म
हूक सी उठती हुई दिल में नुमायाँ देखना
दर्द-ओ-कुल्फ़त और जिगर में ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ देखना
टीका राम सुख़न
नज़्म
क्या शय है क्या कहूँ रुख़-ए-ख़ंदान-ए-सुब्ह-ए-ईद
गोया बहार पर है गुलिस्तान-ए-सुब्ह-ए-ईद
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
तिरी ख़ल्वत का हर फ़ानूस इक महताब-ए-लर्ज़ां है
तिरा अबरेशमी बिस्तर नहीं इक ख़्वाब-ए-ख़ंदाँ है
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
मोहब्बत जब चमक उठती थी उस की चश्म-ए-ख़ंदाँ में
ख़मिस्तान-ए-फ़लक से नूर की सहबा छलकती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आज का ख़ून है रंग-ए-गुल-ए-फ़र्दा के लिए
दर्द-ए-ज़ख़्म-ए-दिल-ए-मजरूह की शिद्दत को न देख