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नज़्म
दर्द-ए-तिफ़ली में अगर कोई रुलाता था मुझे
शोरिश-ए-ज़ंजीर-ए-दर में लुत्फ़ आता था मुझे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रोज़ ओ शब बैन करती हैं दहलीज़ पर और ज़ंजीर-ए-दर मुझ से खुलती नहीं
फ़र्श-ए-हमवार पर पाँव चलता नहीं
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
हम सलासिल की हर इक झंकार से वाक़िफ़ तो हैं
या'नी ज़ंजीर-ओ-सलीब-ओ-दार से वाक़िफ़ तो हैं
सोहन राही
नज़्म
मुक़द्दरात की घटस है अब तो ज़ीक़-ए-नफ़स
शिकस्ता करना है ज़ंजीर-ए-हल्क़ा-हा-ए-नविश्त
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं