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नज़्म
फ़रोग़-ए-माह से क्या जगमगा रही है बहार
गुलों में नूर की शमएँ जला रही है बहार
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
ऐ चचा ख़र्रू शिचोफ़ ऐ मामूँ केंडी अस्सलाम
एक ही ख़त है ये मामूँ और चचा दोनों के नाम