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नज़्म
पहले भी क्या सुनाई दिया होगा
कि एक अभागी समाअ'त को एक घंटे की नशा गुमान ज़र्ब-ए-नादीदा
अहमद हमेश
नज़्म
मक़ाम-ए-नाज़ुक पे ज़र्ब-ए-कारी से जाँ बचाने का है वसीला
कि अपनी महरूमियों से छुपने का एक हीला?
नून मीम राशिद
नज़्म
कभी मोहब्बत ने ये कहा था मैं एक महबूब आदमी हूँ
मगर वो ज़र्ब-ए-जफ़ा पड़ी है कि एक मज़रूब आदमी हूँ
तारिक़ क़मर
नज़्म
ज़किया सुल्ताना नय्यर
नज़्म
'अश्क' ज़रूरत है इस को बस एक ही ज़र्ब-ए-कामिल की
क़स्र-ए-शहंशाही मुतज़लज़ल कल भी था और आज भी है
मासूम शर्क़ी
नज़्म
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
न पूछ मुझ से वो राहत जो इज़्तिराब में है
तू मिस्ल-ए-अंजुम-ए-रख़्शाँ नहीं तो कुछ भी नहीं