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नज़्म
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये चीख़ती हुई रूहें ये हसरतों के सनम
ये बज़्म-ए-कुफ़्र-ओ-यक़ीं ये जहान-ए-दैर-ओ-हरम
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
बहुत दिन से वतन में इक महाज़-ए-जंग क़ाएम है
कहीं है धर्म को ख़तरा कहीं ईमान को ख़तरा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
देख कर तेरे सितम ऐ हामी-ए-अम्न-ओ-अमाँ
गुर्ग रह जाते हैं दाँतों में दबा कर उँगलियाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इमाम और मुक़तदी सफ़ीरान-अहल-ए-ईमाँ
हुज़ूर-याबी की नुदरतों से कलाम करते सलाम करते