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नज़्म
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मक़ाम-ए-इंस-ओ-‘इरफ़ाँ में रहें आज़ाद हम दोनों
मिसालन नित नई रस्में करें ईजाद हम दोनों
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मैं कि मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त का पुराना मय-ख़्वार
महफ़िल-ए-हुस्न का इक मुतरिब-ए-शीरीं-गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर उसी वादी-ए-शादाब में लौट आया हूँ
जिस में पिन्हाँ मिरे ख़्वाबों की तरब-गाहें हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वादी-ए-कश्मीर है या चश्मा-ए-क़ुदरत है ये
गोशे गोशे में जो बिखरी बे-बहा दौलत है ये