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नज़्म
ज़र्रा-ए-तारीक मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ होने को है
क़तरा-ए-नाचीज़ बहर-ए-बेकराँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
अंजुम से बढ़ के तेरा हर ज़र्रा ज़ौ-फ़िशाँ है
जल्वों से तेरे अब तक हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सर-बुलंदी से तिरी मिलता है झुक कर आसमाँ
ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आता है मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ
ख़ुर्शीद अहमद जामी
नज़्म
बाग़ की आँखें हैं ये या हैं सितारे ज़ौ-फ़िशाँ
छूटते हैं रंग-ओ-बू के गोया फ़व्वारे यहाँ
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
तारीक दिल का गोशा न हो ज़ौ-फ़िशाँ कहीं
रूदाद-ए-ग़म सुनाते ही यूँ आई उन की याद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
सुब्ह-ए-सादिक़ की तरह रौशन है बापू तेरी ज़ात
ज़ौ-फ़िशाँ है हिन्द की तारीख़ में तेरा सबात