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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
ज़र्रा-ए-तारीक मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ होने को है
क़तरा-ए-नाचीज़ बहर-ए-बेकराँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
अंजुम से बढ़ के तेरा हर ज़र्रा ज़ौ-फ़िशाँ है
जल्वों से तेरे अब तक हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सर-बुलंदी से तिरी मिलता है झुक कर आसमाँ
ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आता है मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ