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नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
न ज़ौक़-ए-जाम-ओ-मय-कदा न बुत-कदे की आरज़ू
न तौफ़ कू-ए-यार का न हसरतें न जुस्तुजू
क़ैसर अमरावतवी
नज़्म
गिरामी-क़द्र भी ज़ी-तमकनत भी मोहतरम भी हैं
तब-व-ताब-ए-चमन भी ज़ौक़-ए-तमकीन-ए-बहाराँ भी
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
दास्तान-ए-अहद-ए-पारीना है ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू
अब छलकता है ख़ुम-ओ-साग़र से इंसाँ का लहू
अख़्तर पयामी
नज़्म
रात आई जाग उठा इंसाँ का ज़ौक़-ए-बे-बिसात
आख़िरी इस का ठिकाना मर्द ओ ज़न का इख़्तिलात
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
ये मो'जिज़ा है तिरे ज़ौक़-ए-ताज़ा-कारी का
कि सर-निगूँ है फ़र-ओ-फ़ाल शहरयारी का