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नज़्म
हुस्न की जल्वा-गह-ए-नाज़ का अफ़्सूँ तस्लीम
यही क़ुर्बां--गह-ए-अरबाब-ए-नज़र क्यूँ हो जाए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
क़य्यूम नज़र
नज़्म
समुंदरों की सत्ह भी नज़र न आई दूर-दूर
वसीअ' आसमान में उड़ान भर के थक गया था फिर ज़मीन पर रुका
बदनाम नज़र
नज़्म
ला, तबर ख़ून के दरिया में नहाने दे मुझे
सर-ए-पुर-नख़वत-ए-अर्बाब-ए-ज़माँ तोडूँगा
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
आदमी मिन्नत-कश-ए-अरबाब-ए-इरफ़ाँ ही रहा
दर्द-ए-इंसानी मगर महरूम-ए-दरमाँ ही रहा