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नज़्म
जिस में कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त का मद्द-ओ-जज़र है साफ़ साफ़
मंज़र-ए-दोज़ख़-ओ-बहिश्त पेश-ए-नज़र है साफ़ साफ़
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
है दिल-ए-सादा तिरा वारफ़्ता-ए-हुस्न-ए-हिजाब
ज़िश्त-रूई का कहीं पर्दा न हो रंगीं नक़ाब
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
मौत और ज़ीस्त की रोज़ाना सफ़-आराई में
हम पे क्या गुज़रेगी अज्दाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये हम जो ज़ीस्त के हर इश्क़ में सच्चाइयाँ सोचें
ये हम जिन का असासा तिश्नगी, तन्हाइयाँ सोचें
अहमद फ़राज़
नज़्म
मौत और ज़ीस्त के संगम पे परेशाँ क्यूँ हो
उस का बख़्शा हुआ सह-रंग-ए-अलम ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे