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नज़्म
तेरी रग रग में वफ़ूर-ए-जोशिश-ए-सैलाब था
तेरा हर जज़्बा ज़िया-ए-गौहर-ए-नायाब था
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
'ज़ियाई' और 'नय्यर' के सिवा और नाम भी होंगे
मोहब्बत के सहीफ़ों में फ़क़त इन दो के आए हैं
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
नज़्म
जहाँ में है ज़िया मिरी मैं हुस्न-ए-जल्वा-कार हूँ
मैं रौनक़ इस चमन की हूँ मैं फ़स्ल-ए-नौ-बहार हूँ
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
मुझे ऐ वतन तू ज़रा बता किधर अब हैं वो तिरी सन’अतें
जो हर एक मुल्क से लाई थीं तिरे पास खींच के दौलतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
दर-ओ-दीवार नज़र आते हैं क्या साफ़-ओ-सुबुक
सहर करती है निगाहों पे ज़िया-ए-महताब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ये मुस्कुराती हुई सुब्ह-ओ-शाम-ओ-शब की दुल्हन
दिल-ओ-नज़र के लिए सूद-ए-बे-ज़ियाँ की तरह
दौर आफ़रीदी
नज़्म
आह-ए-दिल-ए-मुज़्तर की तासीर नज़र आई
क्या ख़्वाब-ए-मोहब्बत की ता'बीर नज़र आई